मेरा ईस्वर ,और तेरा खुदा ,जहाँ भी ह ,
सृस्टि का विधाता वो एक ह ,, उसके टुकड़े करके दो करदे ऐसा सामर्थ्य इंसान में नहीं ?
तेरे मेरे पूजने में फर्क होगा ,,
तेरे मेरे अनुभव ज्ञान में फर्क होगा ,,
उसकी दी हुई ,हवा, पानी, धुप, आसमान, पृथ्वी ,में फर्क तो नहीं ,,
बस मन के फर्क में इतना समझ बैठ जाये
जीवो शांति से और जीने दो ,,
तो आराधना,,संम्पन होजाये ,,
जो खोटा करे और सुख चाहें, तुलसी कैसे होय