आसमां खामोश है
फ़िज़ा मदहोश है
तुम साथ नहीं ,अफ़सोस है
सतरंगी सपने
देखे थे
तुमने हमने
यहीं इसी बियावान में
उगती सुबह ढलती शाम में
धोंकती मध्यान में
मध्य रात्रि का पहर
अधखुली आँखों का कहर
बेनूर सी होती आशाएँ
खिसियाती सी दिशाएँ
साथ होना भी
कब आसान था
दूर होकर जीना भी
कहाँ आसान है
कोमल से दिल पे
रखा अब पाषाण है
नियति यही मान लिया
मिलन असंभव जान लिया
राहें अलग हुई
दिल ने कब मान लिया
हर रात सूजती हैं आंखें
हर शाम मचलता है दिल
रूबरू ना सही
ख्वाबों में तो आके मिल .