मुझे इस बात का बेहद दुख है कि दलितों व आदिवासियों की हत्या पर देश के सभी बड़े नेता चुप्पी क्यों साध लेते हैं,क्या नेता उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ भी जाति देखकर उठायेंगे? क्या देश के न्यायालयों को ये अमानवीय कृत्य नजर नहीं आते ?
क्या इसे हम सच्ची आज़ादी कहेंगे?
ह्रदय छलनी है !